बिहार में 84 सीबी-नॉट व 207 ट्रू-नॉट मशीन उपलब्ध

 

- टीबी मरीजों की जांच और प्रभावी उपचार के लिए है महत्वपूर्ण

पटना-
टीबी उन्मूलन के लिए अधिकतम टीबी रोगियों की जांच प्रभावी मानी गयी है. राज्य में टीबी जांच के लिए माइक्रोस्कोपिक के अलावा ट्रू-नॉट विधि को सटीक मानी जाती है. राज्य के विभिन्न अस्पतालों में अब 84 सीबी-नॉट मशीन एवं 207 ट्रू-नॉट मशीन उपलब्ध हैं. उपलब्ध ट्रू-नॉट मशीनों में 37 डीओ मशीन (जिसमें एक बार में एक सैंपल की जांच होती है) एवं 170 क्वाट्रो मशीन (जिसमें एक साथ चार सैंपल की जांच होती है) हैं. इन मशीनों द्वारा टीबी एवं फेफड़ा संबंधी टीबी की भी जांच की जा सकती है. राज्य स्वास्थ्य समिति से प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य यक्ष्मा भंडार एवं जिला यक्ष्मा केंद्रों में टीबी एवं फेफड़ा संबंधी टीबी जांच के लिए आवश्यक चिप्स पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2023 के अनुसार, देश में एमडीआर टीबी के 1 लाख 10 हजार मरीज हैं जबकि वर्ष 2025 तक देश को टीबी से मुक्त करने का भी लक्ष्य है.

प्रोत्साहन राशि का है प्रावधान:
सूबे में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से मेडिकल कॉलेज तक टीबी रोगियों की जाँच एवं उपचार की सुविधा उपलब्ध है. टीबी रोगियों के नोटिफिकेशन को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय यक्ष्मा उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत निजी चिकित्सक, अस्पताल एवं क्लिनिक द्वारा यक्ष्मा रोगियों का नोटिफिकेशन करने पर उन्हें 500 रुपये एवं एवं उपचार कर सक्सेसफुल आउटकम रिपोर्ट देने पर 500 रुपये प्रति मरीज प्रोत्साहन राशि दी जाती है. एमडीआर-टीबी के नोटिफिकेशन में 1500 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जा रही है. टीबी रोगियों को उनके इलाज के दौरान बेहतर पोषण के लिए 3000 रुपये की धनराशि दो किश्तों में दी जा रही है.

हवा से फैलता है टीबी का रोगाणु :
टीबी के रोगाणु वायु द्वारा फैलते हैं. जब फेफड़े का यक्ष्मा रोगी खांसता या छींकता है तो लाखों-करोड़ों की संख्या में टीबी के रोगाणु थूक के छोटे कणों (ड्राप्लेट्स) के रूप में वातावरण में फैलते है. बलगम के छोटे-छोटे कण जब सांस के साथ स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाता है और वह व्यक्ति टीबी रोग से ग्रसित हो जाता है. चिकित्सकों की देखरेख में रोगी को अल्पावधि वाली क्षय निरोधक औषधियों के सेवन कराने वाली विधि को डॉट्स (डायरेक्टली ऑब्जर्वड ट्रिटमेंट शॉर्ट कोर्स) कहते हैं. इसके तहत किया गया इलाज काफी प्रभावी हो जाता है. पूरा कोर्स कर लेने पर यक्ष्मा बीमारी से मरीजों को मुक्ति भी मिल जाती है.

रिपोर्टर

  • Dr. Rajesh Kumar
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