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कार्यशील महिला: सशक्तिकरण और संतुलन की चुनौती
-डॉ. नयन प्रकाश गांधी
भारतीय समाज में महिलाओं की भूमिका सदियों से बहुआयामी रही है। वे एक बेटी, बहन, बहू, माँ और भाभी के रूप में पारिवारिक दायित्वों को निभाती आई हैं। लेकिन बदलते समय के साथ कार्यक्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है, जिससे उनके सामने करियर और परिवार के बीच संतुलन बनाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है। जहाँ एक ओर महिलाएँ आत्मनिर्भर बन रही हैं, वहीं दूसरी ओर पारिवारिक मूल्यों से दूर होने की प्रवृत्ति भी देखने को मिल रही है, जो समाज में अस्थिरता को जन्म दे रही है।भारतीय समाज में परिवार को एक मजबूत इकाई माना जाता है, जहाँ आपसी जुड़ाव, त्याग और सामंजस्य ही रिश्तों को बनाए रखते हैं। सोशल एक्टिविस्ट एकेडमिक रिसर्चर लाइफ कोच डॉ नयन प्रकाश गांधी के अनुसार आज की आधुनिक महिलाएँ अपने करियर को प्राथमिकता देने के कारण पारिवारिक दायित्वों की अनदेखी कर रही हैं।
- कई कार्यशील महिलाएँ नौकरी और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच संघर्ष कर रही हैं, जिससे उनका मानसिक तनाव बढ़ रहा है।
- दांपत्य जीवन में बढ़ते तनाव के कारण तलाक के मामलों में इजाफा हो रहा है।
- संयुक्त परिवारों का विघटन हो रहा है, जिससे सामाजिक ढाँचा कमजोर पड़ रहा है।
- छोटे बच्चों की देखभाल पर असर पड़ रहा है, क्योंकि माता-पिता दोनों कामकाजी होने के कारण वे नैतिक और सांस्कृतिक शिक्षा से वंचित हो रहे हैं। इस प्रकार, महिलाओं के लिए करियर और पारिवारिक दायित्वों के बीच संतुलन बनाना केवल एक व्यक्तिगत चुनौती नहीं है, बल्कि यह सामाजिक स्थिरता से भी जुड़ा हुआ विषय है। महिला सशक्तिकरण का मूल उद्देश्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना और उन्हें समान अधिकार देना था, लेकिन हाल के वर्षों में यह देखा गया है कि इसका गलत प्रभाव भी पड़ा है। महिलाएँ स्वतंत्रता और अधिकारों की आड़ में परिवार से कट रही हैं, जिससे दांपत्य जीवन में असहमति और टकराव बढ़ रहा है।
समाज में उभरती समस्याएँ:
- रिश्तों में संवादहीनता: कार्यक्षेत्र की व्यस्तता के कारण पति-पत्नी के बीच बातचीत की कमी रिश्तों को कमजोर कर रही है।
- संयुक्त परिवारों का विघटन: पारिवारिक मूल्यों से विमुखता के कारण संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और बुजुर्गों की देखभाल का संकट खड़ा हो गया है।
- तलाक की बढ़ती दर: हाल के वर्षों में तलाक के मामलों में 50% तक वृद्धि हुई है, जिसमें अधिकतर मामले कार्यशील महिलाओं द्वारा दायर किए गए हैं।
- बच्चों पर प्रभाव: माता-पिता दोनों के नौकरी में होने के कारण बच्चों पर ध्यान कम दिया जा रहा है, जिससे उनके मानसिक और नैतिक विकास पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।इसका समाधान यह नहीं है कि महिलाएँ काम करना छोड़ दें, बल्कि उन्हें अपने कार्यक्षेत्र और पारिवारिक जीवन में सही संतुलन बनाए रखने के उपाय अपनाने चाहिए।
महिला अपराध और झूठे मामलों की बढ़ती संख्या
महिला सशक्तिकरण के नाम पर कुछ महिलाएँ कानूनी प्रावधानों का गलत उपयोग कर रही हैं, जिससे निर्दोष पुरुषों और उनके परिवारों को मानसिक उत्पीड़न झेलना पड़ रहा है।
महिला अपराध से जुड़े कुछ अहम आँकड़े (NCRB 2023 के अनुसार):
- 498A (दहेज उत्पीड़न) के तहत दर्ज मामलों में से 30% झूठे पाए गए।
- घरेलू हिंसा और उत्पीड़न के झूठे मामलों में पिछले 5 वर्षों में 20% की वृद्धि हुई है।
- तलाक के मामलों में से 65% कार्यशील महिलाओं द्वारा दर्ज किए गए हैं।
महिलाओं को उनके अधिकार मिलने चाहिए, लेकिन झूठे आरोपों से बचने के लिए कानूनी सुधार भी आवश्यक हैं।
समाज और महिलाओं के लिए आवश्यक सुधार
महिला सशक्तिकरण का अर्थ केवल स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि यह समाज और परिवार के प्रति उनकी जिम्मेदारियों को भी दर्शाता है। आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन बनाए रखना ही एक आदर्श महिला सशक्तिकरण की नींव हो सकती है।
महिलाओं के लिए आवश्यक कदम:
कार्य और परिवार में संतुलन: महिलाओं को कार्यक्षेत्र और परिवार के बीच सही संतुलन बनाना सीखना होगा।
संस्कारों का संरक्षण: आधुनिकता के साथ भारतीय परंपराओं और पारिवारिक मूल्यों को बनाए रखना आवश्यक है।
संवाद को मजबूत करना: परिवार में पति-पत्नी और अन्य सदस्यों के बीच खुलकर बातचीत करने से रिश्तों में तनाव कम होगा।
बच्चों की परवरिश पर ध्यान देना: मातृत्व की भूमिका को प्राथमिकता देते हुए बच्चों के मानसिक विकास पर ध्यान देना चाहिए।
कानूनी जागरूकता: महिलाओं को अपने अधिकारों के साथ-साथ उनके दुरुपयोग से बचने के लिए कानूनों की सही जानकारी होनी चाहिए।
महिला सशक्तिकरण आज के समय की जरूरत है, लेकिन इसे सही दिशा में ले जाना भी आवश्यक है। भारतीय समाज में महिलाओं की भूमिका केवल एक प्रोफेशनल तक सीमित नहीं हो सकती, बल्कि वे परिवार की नींव भी हैं। यदि महिलाएँ अपने करियर के साथ पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों का सम्मान करें, तो वे सच्चे अर्थों में सशक्त हो सकती हैं।संतुलन की इस यात्रा में महिलाओं को अपनी स्वतंत्रता और जिम्मेदारियों के बीच सामंजस्य स्थापित करना होगा, ताकि वे व्यक्तिगत सफलता के साथ-साथ एक खुशहाल समाज के निर्माण में भी योगदान दे सकें।
लेखक परिचय:
डॉ. नयन प्रकाश गांधी भारत के चर्चित युवा सामाजिक विचारकों में से एक हैं। वे प्रबंधन और समाज से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर शोधपरक लेखन करते हैं। समसामयिक मुद्दों पर उनकी निष्पक्ष और संतुलित राय समाज को नई दिशा देने का प्रयास करती है। यह लेख उनके निजी विचार हैं।
रिपोर्टर
The Reporter specializes in covering a news beat, produces daily news for Aaple Rajya News
Aishwarya Sinha