कार्यकर्ताओं का भारी विरोध, सदाकत से लगी महागठबंधन पर मोहर, पिछलग्गू बनी कांग्रेस

-रितेश सिन्हा की पटना, बिहार से स्पेशल रिपोर्ट।

बिहार में कांग्रेस ने अपनी कार्यसमिति ने मैराथन बैठक कर एक इतिहास रचने की कोशिश की। अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के नेतृत्व में पार्टी प्रवक्ताओं ने दो महीने में सरकार बनाने का फार्मूला निकाल लिया। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की पदयात्रा से बिहार में कांग्रेसियों में जोश है। जोश को ठंडा करते हुए कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने महागठबंधन में जाने के फैसले पर आज मोहर लगा दी। कांग्रेस-राजद गठबंधन पर दो महीने पहले ही सबकुछ तय हो चुका है। अफसोस कांग्रेस बिहार में अंडरकरंट का अब तक पकड़ने में नाकाम है या साजिशन केंद्रीय नेतृत्व प्रदेश में पार्टी को उभरने नहीं देना चाहता है।

राहुल गांधी बिहार में ईबीसी और ओबीसी की राजनीति में उलझ गए हैं जिसका असर चुनाव में दिखेगा। कांग्रेस वर्कर को जगाने वाले राहुल गांधी अगर ठीक तरीके से चुनाव में टिकट नहीं बंटवा पाएं तो इसका खामियाजा भी पार्टी को भुगतना पड़ेगा। दलित राजनीति करने वाले मल्लिकार्जुन खरगे बिहार के पहले दलित और देश के दूसरे मुख्यमंत्री स्वर्गीय भोला पासवान शास्त्री को श्रद्धांजलि तक नहीं दे सके। बिहार में दलित राजनीति में आज भी जगजीवन राम और भोला पासवान शास्त्री का असर है। कांग्रेस भोला पासवान के वारिसों को भी अभी तक हिस्सेदारी नहीं दे सकी। आज भी बनमनखी सीट पर कांग्रेस का दावा नहीं है जहां 6 बार से राजद लगातार चुनाव हार रही है।

ओबीसी और ईबीसी की राजनीति करने वाले जदयू और राजद ने कांग्रेस को उलझा दिया है। ये दल कांग्रेस विरोध से सत्ता तक पहुंचे हैं। कांग्रेस को पिछलग्गू बनाकर अपनी राजनीति चमकाए हुए हैं। प्रभारी के नाम पर कांग्रेस ने अब तक जिन नेताओं को भेजा है वे प्रदेश की राजनीति में भी दो कौड़ी के साबित हुए। इन नेताओं की अपने-अपने प्रदेशों में विधानसभा चुनाव जीतने की हैसियत नहीं है। वर्किंग कमिटी में भी बिहार से जो नेता शामिल हैं, उनमें अखिलेश सिंह और उनका परिवार 8 बार हार चुका है। लाल झंडे को सलाम करने वाले अंतर्राष्ट्रीय नेता कन्हैया अब तक चुनाव नहीं जीत सके हैं। वे तो वर्किंग कमिटी के साथ एनएसयूआई के प्रभारी भी हैं। वे भी दिल्ली के जेएनयू जाने से अब घबराते हैं। दिल्ली और तेलंगाना में एनएसयूआई की बुरी शिकस्त से कांग्रेस को शर्मसार किया है।

बिहार में चंपारण के बाद मोहन दास कर्मचंद गांधी, महात्मा गांधी बन गए। बिहारी जेपी ने पूरे देश में जनता पार्टी का झंडा गाड़ दिया। बिहार ने ही 1980 में कांग्रेस को फिर से देश में जिंदा किया। उस जनता पार्टी का कर्नाटक में अब तक असर है जो कि कांग्रेस अध्यक्ष और प्रभारी का गृह प्रदेश है। खरगे के नेतृत्व में सदाकत आश्रम में कांग्रेस वर्किग कमिटी ने गठबंधन पर मोहर लगाकर कांग्रेसियों के साथ ठगी की है। चुनाव के बाद खरगे और उनकी टीम को सटीक जवाब मिलेगा।

सदाकत आश्रम का ढोल पीटकर खरगे की टीम वाहवाही लूटने की कोशिश कर रही है। कांग्रेसी प्रवक्ता अपने ही इतिहास को छिपाते हुए आधी-अधूरी कहानी सुनाकर मनोरंजन कर रहे हैं। 1921 में मौलाना मज़हरुल हक़ ने अपनी मिल्कियत महात्मा गांधी को कांग्रेस कार्यालय के रूप में सदाक़त आश्रम सौंप दी थी। इतिहास ने करवट ली। 1969 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का विभाजन हुआ। इंडिकेट और सिंडिकेट में बंटी इंदिरा गांधी की कांग्रेस को सदाकत आश्रम छोड़ना पड़ा। इंदिरा के नेतृत्व वाली कांग्रेस का कार्यालय मॉल रोड, विधानसभा के पीछे से चलने लगा। 1977 आते-आते कांग्रेस (आई) गुट को मान्यता मिली।

बचे-खुचे दिग्गज नेता भी इंदिरा गांधी को छोड़कर जनता पार्टी में शामिल हो गए। इनमें मीरा कुमार के पिता स्वर्गीय जगजीवन राम, पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार के सांसद माता-पिता शामिल हैं। सत्येंद्र नारायण सिंह दोबारा कांग्रेस में आने के बाद मुख्यमंत्री भी बने। कांग्रेस संगठन को संगठित करने की जिम्मेदारी संजय गांधी ने संभाली। मजबूत कद-काठी, बढ़ी दाढ़ी और घुंघराले बाल वाले, लाल चेहरे के साथ ठेठ पटना यूनिवर्सिटी के छात्र श्याम सुंदर सिंह धीरज उन दिनों अपने दबबदे के साथ छात्रों में काफी लोकप्रिय थे। उस दौन में छात्र नेता कुमुद रंजन ने धीरज को खास तौर पर एनएसयूआई की बैठक में आमंत्रित किया था।

संजय गांधी ने पटना में धीरज के दबदबे को देखा और उन पर नजर टिक गई। उन्होंने बिहार कांग्रेस के कद्दावर नेता केदार पांडेय के जरिए धीरज को दिल्ली बुलवा लिया और एनएसयूआई अध्यक्ष पद की चिट्ठी थमा दी गई। यहीं से धीरज की राजनीति की शुरूआत हुई। छात्र क्रांति के साथ सत्ता परिवर्तन हुआ था। उसी यूनिवर्सिटी में जयप्रकाश नारायण के आभामंडल को उन्होंने ठंडा करते हुए उन्हें कदमकुंआ तक सीमित कर दिया। 1980 के चुनाव के दौरान संजय गांधी द्वारा पटना से लोकसभा टिकट देने के बावजूद भी कम उम्र का हवाला देते हुए धीरज पीछे हट गए। इंदिरा गांधी और संजय गांधी ने विधानसभा के लिए 1980 में एक कद्दावर नेता कृष्णा साही का टिकट काटते हुए श्याम सुंदर सिंह धीरज की उम्मीदवारी तय कर दी। प्रचार करने संजय गांधी खुद आए थे। धीरज ने चुनाव जीता, मंत्री भी बनाए गए।

एनएसयूआई के इतिहास में एकसाथ अशोक गहलोत और श्याम सुंदर सिंह धीरज ही क्रमशः राजस्थान और बिहार में मंत्री बनाए गए थे। इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी के विरोध में तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर और बिहार विधानसभा में बम फेंकने का धीरज पर आरोप लगा, गिरफ्तार भी हुए। आज सदाकत आश्रम फिर एक बार चर्चा में हैं, मगर आश्रम में कांग्रेस की वापसी में धीरज के योगदान को कांग्रेस प्रवक्ता बताना भुल गए। इंदिरा गांधी के एक फोन पर उन्होंने 2 घंटे के भीतर झंडे और डंडे के साथ सदाकत आश्रम पर कब्जा करते हुए कांग्रेस आई का बोर्ड और झंडा टांग दिया था। 17 साल लगातार एनएसयूआई, यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष, प्रदेश कांग्रेस के महासचिव पद के अलावा कांग्रेस सरकार मे ंहमेशा मंत्री बने रहे।

बिहार कांग्रेस की बिकाऊ चौकड़ी बिके प्रभारी और बिहार के सरकारी दल के मुखिया लालू-नीतीश दोनों ही धीरज के एक दौर में दरबारी रह चुके हैं। कांग्रेस में वर्किंग कमिटी के डॉक्टर शकील अहमद, डॉक्टर अशोक राम, मदन मोहन झा अपने पिताओं के सिफारिश पर यूथ कांग्रेस में कार्यकारी सदस्य बनाए गए थे। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे समेत आधी वर्किंग कमिटी के लोग एक दौर में उनके दरबारी रह चुके हैं।
धीरज कांग्रेस में गठबंधन के खिलाफ हमेशा रहे हैं। मगर कांग्रेस में एक समूह जो शीर्ष नेतृत्व पर हावी है, महागठबंधन में कांग्रेस को बनाए रखना चाहता है।

पिछले 30 सालों में बिहार में कांग्रेस में सूबे की सरदारी उसी को नसीब हुई जिनकी लालू-नीतीश ने सिफारिश की। जिन नेताओं को प्रदेश कांग्रेस कमान सौंपी गई, मौका मिलते ही वे अपने आका नेता के दल में वापसी कर ली। तारिक अनवर, रामजतन सिन्हा, अनिल शर्मा, महबूब अली कैसर, अशोक चौधरी, शकील अहमद, सीईसी-सीडब्लूसी रहे अशोक राम सरीखे अनेकों नेता कांग्रेस को आंख दिखा चुके हैं। देखना है कि टिकट बांटने में क्या खेल होता है, कांग्रेस के वर्कर्स केवल इसी का इंतजार कर रहे हैं। ये कार्यकर्ता क्या करेंगे, इसका आभास केंद्रीय नेतृत्व को हो चुका है। टिकट बंटवारे के बाद असली खेल सामने आएगा।

रिपोर्टर

  • Aishwarya Sinha
    Aishwarya Sinha

    The Reporter specializes in covering a news beat, produces daily news for Aaple Rajya News

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